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    भारत के महान नायक डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर पर राय: क्या वे हैं हमारे वास्तविक राष्ट्रपिता?

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Home - ओपिनियन - भारत के महान नायक डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर पर राय: क्या वे हैं हमारे वास्तविक राष्ट्रपिता?

ओपिनियन

भारत के महान नायक डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर पर राय: क्या वे हैं हमारे वास्तविक राष्ट्रपिता?

Rinku Palodiya
Last updated: July 24, 2025 11:24 pm
Rinku Palodiya - Editor
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8 Min Read
डॉ.अंबेडकर
डॉ. अम्बेडकर
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वह महान नायक जिसे हमने पूरी तरह नहीं समझा

आज जब भारत दुनिया के मंच पर एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है, तब यह प्रश्न पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। क्या हमने उस महान नायक को वह सम्मान दिया है, जिसके विचारों ने स्वतंत्र भारत की आत्मा को गढ़ा?
हम बात कर रहे हैं डॉ. अम्बेडकर की जिन्हें अधिकतर लोग संविधान निर्माता तक ही सीमित कर देते हैं, जबकि उनका योगदान भारत के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, और संस्कृति के हर क्षेत्र में मौलिक और अमिट रहा है।

Contents
वह महान नायक जिसे हमने पूरी तरह नहीं समझाजातिवाद और अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष: अकेला योद्धाऐतिहासिक आंदोलनविरोधी मत और उत्तरसंविधान के माध्यम से वंचितों और दलितों को आवाज़ देनाप्रमुख अनुच्छेदप्रमुख सुधार नीतियाँमहिलाओं की स्वतंत्रता के लिए अग्रदूतहिंदू कोड बिल (1951)शिक्षा: परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली हथियारउनका स्वयं का उदाहरण:उनकी शिक्षा-नीति का प्रभावनिष्कर्ष: क्या हम डॉ. अम्बेडकर का भारत बना पाए हैं?हमें क्या करना चाहिए?अंतिम संदेश

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता माना गया, और इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। लेकिन क्या एक “राष्ट्रपिता” सिर्फ राजनीतिक आज़ादी दिलाने वाला होता है, या वह भी जो इस स्वतंत्र राष्ट्र की नींव, विचारधारा और आत्मा को आकार देता है?

यदि गांधी ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराया, तो डॉ. अम्बेडकर ने इस स्वतंत्र भारत को एक न्यायसंगत, समतावादी और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने का मार्ग दिखाया।

जातिवाद और अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष: अकेला योद्धा

डॉ. अम्बेडकर का जीवन जाति-आधारित भेदभाव के विरुद्ध एक ज्वलंत आंदोलन रहा। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों से जातिगत पीड़ा को न सिर्फ सहा, बल्कि उसके विरुद्ध खड़े होकर भारत को नवचेतना दी।

उनका संघर्ष सिर्फ एक समुदाय की मुक्ति के लिए नहीं था, बल्कि पूरे राष्ट्र के नैतिक पुनर्जागरण के लिए था।

ऐतिहासिक आंदोलन

डॉ. अम्बेडकर धम्म दीक्षा और महाड जल सत्याग्रह पर जारी भारतीय डाक टिकट
  • 1927 – महाड़ सत्याग्रह: यह आंदोलन महाराष्ट्र के महाड़ नगर में हुआ जहाँ अम्बेडकर ने दलितों को सार्वजनिक जलस्रोत का उपयोग करने का अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह किया। यह भारत में सामाजिक समानता के लिए पहला संगठित प्रयास था।
  • 1930 – कालाराम मंदिर आंदोलन: आंबेडकर ने धार्मिक स्थलों पर दलितों के प्रवेश के अधिकार के लिए आवाज़ उठाई। नासिक के प्रसिद्ध कालाराम मंदिर में दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए यह आंदोलन शुरू किया गया। यह धार्मिक बराबरी की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल थी।
  • 1956 – नवबौद्ध आंदोलन: जब उन्हें यह लगा कि हिंदू धर्म में जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं, उन्होंने धर्म परिवर्तन का मार्ग चुना और लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अपनाया। यह कदम सांस्कृतिक क्रांति से कम नहीं था।

विरोधी मत और उत्तर

कुछ आलोचक कहते हैं कि डॉ. अम्बेडकर ने हिंदू समाज को विभाजित किया। परंतु उन्होंने विभाजन नहीं, बल्कि मुक्ति का मार्ग दिखाया उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जिसमें इंसान की पहचान उसके कर्म और ज्ञान से हो, न कि जन्म से।

संविधान के माध्यम से वंचितों और दलितों को आवाज़ देना

भारत का संविधान सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि अम्बेडकर की सामाजिक दृष्टि का प्रमाण है। उन्होंने इसे न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों पर आधारित रखा, जिससे हर वर्ग को समान अधिकार मिले।

प्रमुख अनुच्छेद

  • अनुच्छेद 14–18: भारत में कानून के समक्ष समानता और भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का पूर्ण उन्मूलन
  • अनुच्छेद 46: राज्य की जिम्मेदारी — SC/ST और पिछड़े वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की रक्षा करना

प्रमुख सुधार नीतियाँ

  • आरक्षण प्रणाली: जिससे दलितों और पिछड़ों को शिक्षा और रोजगार में अवसर मिले
  • हिंदू कोड बिल: महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, तलाक की स्वतंत्रता, और कानूनी हैसियत
  • श्रम सुधार: न्यूनतम वेतन, काम के घंटे, मातृत्व लाभ जैसे कानून

प्रश्न: क्या आज हम उस भारत में हैं जिसकी कल्पना डॉ. अम्बेडकर ने की थी?

उत्तर: नहीं। आज भी समाज में जातिगत भेदभाव, सामाजिक असमानता और अवसरों की विषमता मौजूद है। लेकिन डॉ. अम्बेडकर द्वारा बनाए गए कानूनों ने हमें संघर्ष का वैधानिक हथियार जरूर दिया है।

महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए अग्रदूत

भारत जैसे परंपरागत समाज में महिलाओं को समान अधिकार देना किसी क्रांति से कम नहीं था। डॉ. अम्बेडकर ने महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने के लिए अनेक कदम उठाए।

हिंदू कोड बिल (1951)

यह बिल उस समय का सबसे क्रांतिकारी कदम था जिसमें:

  • संपत्ति में अधिकार
  • तलाक का अधिकार
  • विवाह में समानता और उत्तराधिकार में हिस्सेदारी दी गई।

लेकिन विरोध हुआ, खासकर परंपरावादी पुरुष प्रधान समाज द्वारा इतना विरोध हुआ कि डॉ. अम्बेडकर ने अंततः कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।हिन्दू कोड बिल के कारण महिलाओ को ये सारे अधिकार मिले, कि आज महिलाएं संपत्ति का दावा कर सकती हैं या अपनी मर्जी से विवाह या तलाक कर सकती हैं यह सब डॉ. अम्बेडकर की दूरदृष्टि का परिणाम है।

यह भी पढ़ें: नई शिक्षा नीति 2020 पर राय: क्या यह भारत को ज्ञान-शक्ति बना पाएगी?

शिक्षा: परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली हथियार

“शिक्षा वह हथियार है जिससे दुनिया बदली जा सकती है।“ — डॉ. अम्बेडकर

डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि शिक्षा ही एकमात्र तरीका है जिससे कोई भी वंचित वर्ग अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।

उनका स्वयं का उदाहरण:

  • कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से पीएचडी
  • लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) से स्नातकोत्तर

वे पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने उच्च शिक्षा के शिखर को छुआ और फिर उसका लाभ समाज को देने का काम किया।

उनकी शिक्षा-नीति का प्रभाव

  • SC/ST छात्रों के लिए आरक्षण
  • छात्रवृत्ति योजनाएँ
  • प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक शिक्षण संस्थानों की स्थापना

आज भी भारत की शिक्षा प्रणाली में जो भी समावेशी प्रयास दिखाई देते हैं, वे कहीं न कहीं डॉ. अम्बेडकर की नीति की देन हैं। हालांकि, आज भी कई जगहों पर शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच चुनौती बनी हुई है।

डॉ. अम्बेडकर

निष्कर्ष: क्या हम डॉ. अम्बेडकर का भारत बना पाए हैं?

डॉ. भीमराव अम्बेडकर को सिर्फ “दलितों के मसीहा” कहना उनके वैचारिक कद को छोटा करना है।
वे भारत के सबसे प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और यथार्थवादी चिंतक थे। उन्होंने न केवल भारत को संविधान दिया, बल्कि एक सोच, एक दिशा और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण का लक्ष्य भी दिया।

आज जब हम जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर बंट रहे हैं तो हमें डॉ. अम्बेडकर के विचारों की सबसे अधिक आवश्यकता है।

हमें क्या करना चाहिए?

कार्यउद्देश्य
जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाएंसामाजिक समरसता और समानता के लिए
महिलाओं और वंचित वर्गों के अधिकारों का समर्थन करेंन्यायपूर्ण समाज की नींव रखने के लिए
शिक्षा को बढ़ावा देजागरूकता और अवसर सुनिश्चित करने के लिए

अंतिम संदेश

“सामाजिक न्याय के बिना, राजनीतिक स्वतंत्रता बेमानी है।” — डॉ. अम्बेडकर

यदि हम सचमुच एक विकसित भारत चाहते हैं तो केवल आर्थिक विकास ही नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और न्याय को प्राथमिकता देनी होगी। और यह तभी संभव है जब हम डॉ. आंबेडकर के विचारों, संघर्षों और सपनों को आत्मसात करें।

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