अनुभव की बात,अनुभव के साथ
राजधानी दिल्ली में आयोजित ‘हुनर हाट’ मेले में बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी-चोखा का स्वाद लिया और कुल्हड़ वाली चाय पी।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लिट्टी-चोखा की काफी तारीफ की और कहा “मजा आ गया”।निःसन्देह ये कोई राजनैतिक घटना नहीं है और न ही कोई अनोखी घटना है।प्रधानमंत्री भी हम सब के जैसे एक इंसान हैं।परन्तु जिस प्रकार सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों पर प्रधानमंत्री के लिट्टी-चोखा खाने को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़ कर विपक्ष द्वारा इसका मजाक उड़ाया जा रहा है और लिट्टी-चोखा खाते प्रधानमंत्री की तस्वीर पर व्यंग्य किया जा रहा है,वो हास्यास्पद है।विपक्षी दलों के कार्यकर्ता या फिर प्रधानमंत्री का विरोध करने वाले उनके लिट्टी-चोखा खाने को राजनैतिक नौटंकी कह रहे हैं।कई विपक्षी नेताओं ने इस पर अपने-अपने तरीके से कटाक्ष किया है।
लिट्टी-चोखा बिहार का लोकप्रिय व्यंजन है,जिसे बिहार और उत्तरप्रदेश के लोग बड़े चाव से बनाते और खाते हैं।आए दिन करीब-करीब शादी विवाह,पार्टी,फंक्शन में ये व्यंजन जरूर मौजूद रहता है।विशेष रूप से ठंढ और बरसात के मौसम में बड़े शौक से बिहार के लोग लिट्टी-चोखा बनाते हैं,बनाते ही नहीं अपने दोस्तों और जानने वालों को आमंत्रित कर खिलाते भी हैं।ऐसे कई लोग हैं जो चिकन,मटन और मिठाई के निमंत्रण में नहीं जाते,लेकिन लिट्टी-चोखा का निमंत्रण शायद ही कोई मिस करता है।इसकी वजह भी है,लिट्टी-चोखा पूरी तरह शुद्ध भोजन है।तेल,घी, मसाले के बगैर आग पर पकाए गए इस व्यंजन को हर कोई खा सकता है।न रक्तचाप की चिंता,न मधुमेह की।ये एक पौष्टिक और अति स्वादिष्ट भोजन है।इसे बनाने में इतने कम सामानों का इस्तेमाल होता है कि गरीब व्यक्ति भी इसका लुफ्त ले सकता है।कभी गाँव के किसानों का प्रमुख भोजन रहा लिट्टी-चोखा आज शहरों में और समृद्ध लोगों की भी पसन्द बन चुका है।
यदि प्रधानमंत्री ने शौक से लिट्टी-चोखा खाया और इसकी तारीफ की तो फिर इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।लिट्टी-चोखा किसी जाति,धर्म और समुदाय से जुड़ा व्यंजन तो है नहीं।विरोध की ये ओछी राजनीति कहीं से भी शोभा नहीं देती, ये विपक्ष की हताशा दर्शाती है।राजनीति में समर्थन और विरोध तो होना ही चाहिए,लेकिन इस तरह के छिछोरे विरोध से बचना चाहिए।