“अनुभव की बात”
नागरिकता संशोधन कानून पर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। नागरिकता संशोधन बिल का सदन में पेश होना,समर्थन,विरोध और हंगामे के बीच बिल का कानून बनना।तब से लगातार इस कानून के विरोध या फिर समर्थन में हंगामा होना,लगातार जारी है।राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता समेत,आम लोग यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि वो इस कानून का समर्थन करें या फिर विरोध।लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि इस मुद्दे पर सरकार सही है या फिर विपक्ष।इस कानून के समर्थक या फिर विरोधी, किसी के भी दलील को पूरी तरह नकार देना नाइंसाफी होगी।
सिक्के के दो पहलू होते हैं।किसी एक के बिना सिक्का अधूरा होता है।इस कानून के भी दो पहलू हैं।एक संवैधानिक पहलू जबकि दूसरा मानवीय पहलू।यदि इस कानून के विरोध करने वालों की बातों पर गौर किया जाए और इस कानून के संवैधानिक पहलू को देखा जाए तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि हमारा संविधान इस तरह के कानून को मंजूरी नहीं देता।हमारा संविधान धार्मिक आधार पर भेदभाव की मंजूरी कतई नहीं देता है।ऐसे में वो सारे लोग सही लगते हैं,जो इस कानून का विरोध कर रहे हैं।
परंतु,यदि जैसा कि पहले भी और फिर गुरुवार को वैशाली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए देश के गृह मंत्री अमित शाह ने लोगों से पूछा कि “पाकिस्तान,बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले पीड़ित हिंदुओं,जैनों और सिखों को देश की नागरिकता देनी चाहिए या कि नहीं” तो ऐसे सवाल पर मानवता के नाते हम सब का जवाब होता है “हाँ”।ऐसे लोगों को निश्चित रूप से नागरिकता देनी चाहिए,जो उन देशों में विभिन्न रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं।सरकार का यह कहना भी गलत नहीं लगता कि चूँकि ये तीनों मुस्लिम राष्ट्र हैं,सो वहां मुस्लिम समुदाय के प्रताड़ित होने की संभावना नगन्य है।
राजनीति में टाइमिंग का काफी महत्व है।यदि गौर से देखा जाए तो ऐसे वक्त में जब कि हमारा राष्ट्र आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और महंगाई समेत विभिन्न प्रकार की कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है,ऐसे में इस वक्त इस कानून का लाना कहीं से भी महत्वपूर्ण नहीं था।ऐसा लगता है,सरकार ने जानबूझकर ऐसे वक्त में इस कानून को लागू किया है,जब पूरा देश नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार से आम लोगों से जुड़ी तमाम समस्याओं के बारे में सवाल कर रहा है और हमारी सरकार इस समस्या को दूर कर पाने में असमर्थ नजर आ रही है।थकहार कर सरकार सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों को लाकर देशवासियों का ध्यान भटकाना चाह रही है।इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह से अपनी योजना में सफल रही और विपक्ष कई महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़ नागरिकता संशोधन कानून में उलझ कर रह गया है।बेरोजगारी और महंगाई जैसे आम लोगों से जुड़े मुद्दे गायब हो चुके हैं।
फिर किसे दोषी कहा जाए,सरकार या फिर विपक्ष,क्योंकि दोनों ही आम लोगों से जुड़े मुद्दों से भटक चुकी है।