“अनुभव की बात,अनुभव के साथ”
ये हमारे देश को आखिर हुआ क्या है?दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन कानून के पास होने के बाद से इस कानून के विरोध में जो आवाजें उठनी शुरू हुई,उसने एक आंदोलन का रूप ले लिया है,जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा।कई राज्यों में भीषण हिंसा हुई तो कहीं अभी भी जारी है।इस कानून का विरोध कर रहे छात्रों पर पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की गई।विश्वविद्यालय के कैंपस में घुसकर छात्र एवं छात्राओं की पिटाई की गई एवं उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।इंग्लैंड स्थित विश्व के सबसे बड़े ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तक इसकी आग पहुंच गई और वहाँ भी इस बिल के खिलाफ नारे लगे।इतना ही नहीं,संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भी भारत में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सैन्य बलों की तैनाती पर चिंता जाहिर की है।
असम,मेघालय,अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु,उत्तर प्रदेश, दिल्ली,बिहार समेत देश के अधिकांश राज्यों में इस कानून के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं।शर्मनाक ये कि विरोध प्रदर्शन करने वाले हिंसा पर उतारू हैं और तोड़फोड़ सहित सरकारी संपत्तियों को आग के हवाले कर अपने ही देश की सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
सवाल ये उठता है कि,ये विरोध क्यों? विरोध करने वाले राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों के लोगों का कहना है कि यह कानून धर्म के आधार पर देश को बांटने वाला है,जो हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह का यह स्पष्ट कहना है कि इस कानून से किसी भी मुसलमान को चिंता करने की जरूरत नहीं है और यह कानून नागरिकता देने के लिए है,किसी की नागरिकता लेने के लिए नहीं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह कहा है कि नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर किसी भी भारतीय को किसी भी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।उन्होंने कहा कि इससे भारत के किसी भी धर्म के किसी भी नागरिक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।वहीं देश के प्रसिद्ध राजनीतिक समीक्षक योगेंद्र यादव ने कहा है कि यह बिल नागरिकता को धर्म से जोड़ता है।जिसका दूरगामी प्रभाव होगा।इस बिल का विरोध होना चाहिए।यह भारत के स्वधर्म को बचाने की लड़ाई है।
इस बिल पर सदन में हुए मतदान के दौरान इस बिल के समर्थन में मतदान करने वाले कुछ राजनीतिक दल भी अब इस बिल को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं और स्पष्ट रूप से कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।इस बिल पर रोक लगाने के लिए इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
देश की वर्तमान हालत हमें शर्मिंदा करती है।विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है,यूँ कहें कि विरोध लोकतंत्र का श्रृंगार है।परंतु उसका भी एक दायरा होना चाहिए।वहीं दूसरी ओर हमारी सरकार को भी कोई कानून लाने से पहले अपने देशवासियों को भरोसे में लेना चाहिए।निःसन्देह ये हमारे देश के राजनीति की कड़वी सच्चाई है कि सरकार हो या विपक्ष,उनके हर क्रियाकलाप के पीछे राजनीति और सत्ता ही एकमात्र उद्देश्य होती है।बात सरकार की हो या फिर इस कानून के विरोध करने वालों की,यह समझना सबसे महत्वपूर्ण है कि क्या सरकार ने जो कानून लाया है वह कानून सचमुच हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और यदि ये कानून देश हित में है तो फिर देश में लगी इस आग के लिए जिम्मेवार कौन लोग हैं।कहीं ऐसा तो नहीं कि इस कानून को देखने और समझने का हर किसी का अपना नजरिया हो।
सरकार को भी अपनी जवाबदेही समझनी होगी,उन्हें यह समझना होगा कि ऐसा कुछ न किया जाए जो हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ हो।बेहतर होता कि इस कानून को लाने से पूर्व इस कानून के संबंध में संविधान विशेषज्ञों से,कानून के जानकारों से और सर्वदलीय बैठक कर गहन चिंतन की गई होती।क्योंकि सरकार हो या फिर विपक्ष जो कोई भी हो,किसी को भी भारतीय संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ का हक नहीं है।