अनुभव की बात,अनुभव के साथ ।
महाराष्ट्र में चल रहे कुर्सी के खेल में लोकतंत्र एक बार फिर लज्जित हुआ। निश्चित रूप से महाराष्ट्र के मतदाता हैरान होंगे।उन्होंने किसे मत दिया, उन्होंने किस नेतृत्व में अपना भरोसा जताया,उन्होंने किसके घोषणापत्र को अपना समर्थन दिया।मतदाता हैरान है,मतदाता को कुर्सी का ये खेल समझ नहीं आ रहा।जनतंत्र से ‘जन’ गायब हो चुका है।जनता का,जनता के लिए, और जनता के द्वारा,शासन तो अब रह ही नहीं गया।ये तो नेताओं का,कुर्सी के लिए और नेताओं के द्वारा शासन है।
कुर्सी के लिए भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का तीन दशक से भी पुराना गठबंधन टूट गया।कुर्सी के लिए विपरीत विचारधारा वाले दलों शिवसेना,राकांपा और कांग्रेस ने गठबंधन बनाया तो वहीं कुर्सी के लिए शरद पवार के भतीजे ने अपने चाचा से ही नहीं,अपनी पार्टी से भी बेवफाई कर दी।देश के गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी राजनैतिक चाल से एक बार फिर विरोधियों को पस्त कर दिया और दिखा दिया कि उन्हें ऐसे ही आधुनिक चाणक्य नहीं कहा जाता। शिवसेना,राकांपा और कांग्रेस सरकार गठन के लिए लगातार बैठक करते रहे।जबकि शांत नजर आ रही भारतीय जनता पार्टी चुपचाप पर्दे के पीछे अपनी चाल चलती रही।
आश्चर्यजनक घटनाक्रम में शनिवार की सुबह कुर्सी के खेल में महाराष्ट्र के नए उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने अपने चाचा को ही पटकनी दे दी। अजित पवार राकांपा विधायक दल के नेता पहले ही चुने गए थे और शिवसेना के सरकार में भी उनके उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना थी। लेकिन यह मामला कुर्सी का नहीं,कुछ और ही नजर आ रहा है।क्योंकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार अजीत पवार को घोटाले के आरोप में सलाखों के पीछे करने जा रही थी।निःसन्देह अजित पवार ने अपने बचाव में ही ऐसा कदम उठाया है।भाजपा और अजित पवार के द्वारा पकाई जा रही खिचड़ी की शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस को हवा भी नहीं लग सकी।पूरा देश शनिवार सुबह अखबारों में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार गठन का समाचार पढ़ रहा था तो दूसरी ओर विभिन्न समाचार चैनलों पर देवेंद्र फडणवीस के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और अजित पवार के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने का समाचार चल रहा था।
शुक्रवार रात के अंधेरे में सौदेबाजी तय हुई और शनिवार सुबह करीब 6:00 बजे महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन खत्म भी हो गया और सुबह करीब 7:30 बजे देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली।
कानूनी रूप से तो राज्यपाल के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती।परन्तु, ऐसी स्थिति में जबकि महाराष्ट्र में सत्ता के लिए उठापटक चल रही थी, महामहिम को इस पर और विचार करना चाहिए था।जनमानस में अविश्वास पनप रहा है,राजनेताओं पर ही नहीं,संवैधानिक संस्थाओं पर भी।