संजीव मिश्रा,वरीय संवाददाता ।
पांच विधानसभा की सीटों पर हुए उपचुनाव ने बिहार की सभी राजनीतिक दलों को एक सबक दे गया। क्या पक्ष, क्या विपक्ष, सबों ने जिसकी अनदेखी की, वही उन पर भारी पड़ा। इस उपचुनाव के परिणाम ने न तो परिवारवाद को मंजूर किया और न ही स्थानीय नेताओं की अनदेखी को बर्दाश्त किया।
एकला चलो की नीति का दंभ भरने वाले दलों के लिए भी उपचुनाव सबक दे गया कि कोई यह मुगालते में न रहे कि वे अपने दम पर चुनावी मैदान मार लेंगे। इस परिणाम ने उन दलों को भी करारा झटका दिया है जो किसी सीट को अपनी पुश्तैनी मान चुके थे। हार के बाद भी बार-बार पुराने प्रत्याशी उतारे जाने को भी जनता ने खारिज कर दिया।
कांग्रेस ने अपने किशनगंज सांसद मो जावेद की मां को वहां से विस उम्मीदवार बना दिया। एक ही परिवार में सांसद-विधायक बनाने की रणनीति जनता ही नहीं, कांग्रेसियों को ही नागवार गुजरी।
नाथनगर में भी कमोबेश वही स्थिति जदयू कोटे से गिरधारी यादव सांसद है बांका से
जिले के बेलहर से उनके भाई लालधारी यादव को जदयू स्व टिकट दिलवाने में कामयाब रहे सांसद महोदय ,नतीजा करारी हार हुई बेलहर विधानसभा क्षेत्र में जदयू की ।
अंतर्कलह इस कदर उभरा कि कांग्रेस के एक नेता बगावत होकर चुनावी मैदान में उतर गए। कांग्रेस को लगा कि यह सीट उसके लिए अपराजेय है। पार्टी की यह सोच भारी पड़ी। भाजपा ने यहां एक बार फिर अपने पुराने उम्मीदवार स्वीटी सिंह पर बाजी खेली।
हार के बावजूद फिर से हुए उपचुनाव में स्वीटी को उम्मीदवार बनाए जाने से पार्टी नेता व समर्थकों में कोई जोश नहीं दिखा। नाथनगर में कम वोटों के अंतर से मिली हार पर यह साफ हो गया
कि राजद अपने सहयोगी दलों को दरकिनार कर सफल होने का मंसूबा नहीं पाले।
अगर महागठबंधन नाथनगर में कामयाब रहता तो जीत राजद से या हम उम्मीदवार अजय रॉय की होती ।
ये सिय बचने के लिए बिहार सरकार को पूरी ताकत झोंकनी पड़ी, बावजूद मयज 5000 वोट से लक्ष्मी मंडल जीत पॉय।अगर महागठबंधन साथ होता तो स्थिति कुछ और होती ।
उधर, दरौंदा में भाजपा से कर्णजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह टिकट के प्रबल दावेदार थे। लेकिन एनडीए में जदयू कोटे में सीट जाने के कारण व्यास सिंह को टिकट नहीं मिल सका। वे बागी होकर निर्दलीय चुनावी लड़े और सांसद पति अजय सिंह को मात दे दी।