जितनारायण शर्मा, गोड्डा, झारखंड
*गोड्डा झारखंड*:- जब जनता की सारी आशाएं समाप्त हो जाती है तो जनता अपने क्षेत्र के विकास के लिए एक नए चेहरे को तलाशती है ताकि क्षेत्र का विकास और जनता को उसकी मूलभूत समस्याओं से छुटकारा मिल सके। आज हम बात कर रहे हैं महागामा विधानसभा क्षेत्र की जहां की आबोहवा इस दफे बदली सी दिखाई दे रही है जनता परिवर्तन के मूड में है। हो न हो जनता का रुझान इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि वो किसी नए चेहरे की तलाश में है। बकौल ग्रामीण क्षेत्र में इस दफे सुरेंद्र मोहन केसरी का नाम काफी जोशोखरोश से लिया जा रहा है।जी हां यह वही सुरेंद्र मोहन केसरी हैं जिन्होंने अपने लगातार प्रयासों से विधानसभा क्षेत्र की जनता की नि:स्वार्थ सेवा की है। झारखंड अलग आंदोलन से लेकर अब तक का उनका इतिहास केवल और केवल जनता की भलाई को लेकर ही देखा गया है। बात चाहे लोगों के सार्थक मांगो के समर्थन में आवाज बुलंद करने की हो या फिर मांगे पूरी नहीं होने तक आमरण अनशन की,किसी मे भी सुरेंद्र मोहन केशरी का सानी नहीं है। इसी का नतीजा है कि विधानसभा चुनाव 2019 के नजदीक आते ही इस क्षेत्र की जनता के मुंह में केवल एक ही नाम सुरेंद्र मोहन केसरी का उभर कर सामने आ रहा है।अब बात चाहे जो भी हो फिलहाल क्षेत्र की जनता के मुंह में केसरी का नाम आना उनके प्रतिनिधित्व क्षमता व लोकप्रियता को दर्शाती है। आज हम इसी कड़ी में बात करेंगे सुरेंद्र मोहन केसरी के जीवन के सफर के बारे में कि किस प्रकार उन्होंने अपने जीवन यात्रा राजनीति के रूप में प्रारंभ की साथ ही अब तक किस प्रकार संघर्षरत रहे।
*प्रारंभिक जीवन*
महागामा विधानसभा क्षेत्र से जेएमएम नेता सुरेंद्र मोहन केसरी ने चर्चा में बताया कि उनका जन्म 6 अक्टूबर 1976 को महागामा में हुआ था। पिता जगरनाथ प्रसाद केसरी व माता निर्मला देवी का राजनीति से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। वह एक वैश्य समाज से ताल्लुक रखते हैं। साधारण परिवार होने की वजह से प्रारंभिक जीवन काफी दुख भरा रहा। एक पिता के सहारे एक बड़ा परिवार निर्भर रहना कठिनाइयों भरा होना लाजमी है।
*शिक्षा-दीक्षा*
सुरेंद्र मोहन केसरी की प्रारंभिक शिक्षा महागामा में ही हुई। उन्होंने मैट्रिक ललमटिया हाई स्कूल से पास कर उच्च शिक्षा के लिए दुमका गए। जहां उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। यह समय झारखंड राज्य अलग मूवमेंट का था जिससे वह काफी प्रभावित हुए ओर इस मूवमेंट में कूद पड़े। इसी वजह से आगे की शिक्षा उनकी नहीं हो पाई।
*क्रांतिकारी युवक के रूप में सुरेंद्र मोहन केसरी*
चर्चा में उन्होंने बताया कि जब 2000 ई के आसपास झारखंड राज्य अलग करने को लेकर चर्चा जोर पकड़ गई तो उन्होंने भी अपनी युवावस्था में इस मूवमेंट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया तभी उनकी उम्र करीब 22 वर्ष की रही होगी। आजसू जो उस समय स्टूडेंट यूनियन के रूप में थी, से प्रभावित होकर उनका साथ दिया और आजसू के बैनर तले उन्होंने झारखंड अलग राज्य गठन के मूवमेंट में अपने महत्ती भूमिका निभाई।
*राजनीति की प्रेरणा*
सुरेंद्र मोहन केसरी का राजनीतिक जीवन कहीं ना कहीं झारखंड अलग राज्य गठन के मूवमेंट से जुड़ने के बाद रही है। उन्होंने प्रारंभिक राजनीति का पहला अध्याय यही पर सीखा। वहीं दूसरी ओर आजसू से जुड़ने के बाद लगातार 3 वर्षों तक सन 2009 से 2012 तक गोड्डा जिलाध्यक्ष के रूप में काम किया।
*ज्वलंत मुद्दों ने दिलाई राजनीतिक पहचान*
महागामा विधानसभा में जन्मे एवं यहां के समस्याओं के बीच पले बढ़े सुरेंद्र मोहन केसरी ने क्षेत्र में व्याप्त तमाम छोटी-बड़ी समस्याओं को अपने आंखों से देखा है। बिजली पानी सड़क शिक्षा अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाओं से किस प्रकार इस क्षेत्र की जनता परेशान रहे है उनको देखते हुए बड़े हुए हैं। इन्हीं समस्याओं से प्रेरित होकर उन्होंने सक्रिय राजनीति में अपना कदम रखने का फैसला किया। 2005 में उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में पहला अनशन राजमहल परियोजना प्रबंधन के खिलाफ किया था। जिसमें उन्होंने कोयला के लोकल सेल को पुनः चालू करने की, मांग को लेकर अनशन भी किया। मालूम हो कि इस समय राजमहल परियोजना द्वारा कोयला के लोकल सेल को बंद कर दिया गया था जिससे यहां के लोगों में काफी परेशानी को देखते हुए उन्होंने प्रबंधन को लिखित आवेदन दिया था, मांगे पूरी नहीं होने पर उन्होंने 2005 में 8 दिन तक अनशन जारी रखा। अंततः आठवें दिन प्रबंधन के सीजीएम ने उनकी मांगों को माना जिसके बाद से ही क्षेत्र में कोयला का ई-ऑक्शन शुरू हुआ। दूसरा वाक्या 2007 में क्षेत्र में बिजली पानी कि घोर समस्या का था, जिसको लेकर प्रबंधन को पत्र लिखा गया जिसमें उन्होंने यह जिक्र किया था कि कोल्डफील्ड की गहराई ज्यादा हो जाने से आसपास के तमाम जल स्रोत सूख गए हैं तथा बिजली भी बहाल नहीं की जा रही है। प्रबंधन द्वारा गंभीरता नहीं दिखाये जाने के बाद उन्होंने 2007 में परियोजना को 15 घंटे तक पूर्णरूपेण खदान बंद करवा दिया। भारत के इतिहास में यह पहला मौका था जब कोई भी ओपन कोलफील्ड 15 घंटो तक पूर्णरूपेण बंद रहा हो। तात्कालिक एसडीओ द्वारा शांतिपूर्ण चल रहे अनशन सभा पर लाठीचार्ज का आदेश दिया गया। जिसमे सभा मे उपस्थित काफी लोग घायल हुए तथा पुलिस द्वारा बुरी तरीके से पीटे जाने की वजह से 26 दिनों तक उनका इलाज रांची के रिम्स अस्पताल में चला। मामले में उन पर व 26 लोगो को नामजद अभियुक्त एवं दो हजार लोगों को अज्ञात अभियुक्त बनाया गया था। श्री केसरी के जीवन का यह सबसे बड़ा व सफलतम प्रयास था इस घटना ने उन्हें क्षेत्र में एक नेता के रूप में स्थापित कर दिया। उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और 26 दिनों तक रांची रिम्स में अपना इलाज कराने के बाद स्वस्थ हुए और मामले की न्यायिक जांच कराये जाने मांग की। न्यायिक जांच में उन्होंने जीत हासिल की और एक दो धाराओं को छोड़ कर उन पर लगाए गए तमाम धाराओं को खत्म कर दिया गया। इस घटना ने झारखंड की राजनीति को केंद्र बिंदु बना दिया यह वही वक्त था जब बाबूलाल मरांडी शिबू सोरेन व अर्जुन मुंडा जैसे कद्दावर नेता उनसे मिलने आए।
*अनशनकारी के रूप में केसरी*
सुरेंद्र मोहन केसरी का नाम अनशन कारी के रूप में भी बड़े पैमाने पर लिया जाता है। उन्होंने अनशन को जनता की आवाज के रूप में प्रशासन के खिलाफ खड़ा किया और अपने कई अनशन के माध्यम से उन्होंने जनता को हक दिलाने का भी काम किया । बताया कि महागामा का अनुमंडल बनाया जाना सुरेंद्र मोहन केसरी के प्रयासों का ही नतीजा है कि आज लोगों को सैकड़ों किलोमीटर तय करके गोड्डा अनुमंडल नहीं जाना पड़ता है बल्कि महागामा में हर कर उनका काम हो रहा है। महागामा को अनुमंडल बनाए जाने को लेकर उन्होंने प्रशासन के समक्ष तीन किये। उनका पहला अनशन महागामा के बसुआ चौक पर था जो दसवे दिन तक जारी रहा। दूसरा हनवारा के खैराटीकर मैदान पर रखा गया था जहां उन्होंने प्रशासन के विरूद्ध लगातार 18 दिन तक अनशन किया, हालांकि 18 दिन उनके अनशन को तोड़वा दिया गया। जबकि तीसरा अनशन उन्होंने जिला मुख्यालय के शहीद स्तंभ में किया जहां उन्होंने लगातार 11 दिन तक अनशन जारी रखा हालांकि इसके बाद ही महागामा को अनुमंडल बनाए जाने को लेकर कैबिनेट में प्रस्ताव पारित हो गया। बाद में उन्होंने कुछ अन्य अनशन भी किए जिसमें महागामा को डिग्री कॉलेज देने, आईटीआई कॉलेज देने, ईसीएल द्वारा घोषित 300 बेड का अस्पताल दिए जाने सहित सुंदर जलाशय में फाटक लगाकर जल संग्रह करने को लेकर मांगे रखी थी। जिसके बाद ही इस पर लिखित समझौता हुआ और आज नतीजा सामने है कि महागामा को डिग्री कॉलेज, सुंदर जलाशय में कार्य प्रारंभ है।
नेता के रूप में कहाँ कहाँ रहे सुरेंद्र।
सुरेंद्र 2016 में जिला परिषद का चुनाव लड़े जिसमें क्षेत्र की जनता ने उन्हें महागामा से जिला परिषद बनाया। इससे पूर्व 2014 में महागामा विधानसभा सीट से जेएमएम प्रत्याशी के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा था केवल 500 वोटों के मार्जिन से उन्होंने यह चुनाव हारा।
*रेल नहीं तो कोयला नहीं*
श्री केसरी ने बताया कि हम प्रस्तावित रेलवे लाइन निर्माण योजना को राजमहल परियोजना ललमटिया द्वारा बंद कराए जाने का पुरजोर विरोध करते हैं। इसको लेकर उन्होंने कोयला मंत्रालय को भी पत्र लिखकर विरोध जाहिर किया है। अपने लिखे पत्र में श्री केसरी ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर गोड्डा-पीरपैंती रेल लाइन निर्माण का कार्य नहीं होता है तो इस क्षेत्र में विकास बाधित होगी। रेलवे के नहीं आने से क्षेत्र में रोजगार नहीं बढ़ेगा और ना ही विकास की गति में वृद्धि होगी। इसलिए राजमहल परियोजना द्वारा जताए गए विरोध का हम प्रतिकार करते हैं और अपने क्षेत्र में गोड्डा-पीरपैंती रेल लाइन को शीघ्र अति शीघ्र चालू कराने की मांग करते हैं।अगर ऐसा नहीं होता है तो वह नवंबर से राजमहल परियोजना के खिलाफ धरना देंगे। बताते चलें कि राजमहल परियोजना रेलवे का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि जिस जमीन से होकर रेलवे गुजारना है वहां जमीन के नीचे कोयला होने की संभावना इसका कारण है।
भविष्य की योजनाएं
पूछे जाने पर श्री केसरी ने बताया कि अगर क्षेत्र की जनता उन्हें जीता कर विधानसभा भेजती है तो निश्चय ही वह क्षेत्र के विकास में अपनी महती भूमिका निभाएंगे। कहा कि उनकी विशेष प्राथमिकता करप्शन को समाप्त करना है साथ ही क्षेत्र से बिचोलियागिरी समाप्त करना, शिक्षा में सुधार, किसानों के लिए खेती व पटवन की व्यवस्था, रोजगार तथा किसानों के पलायन को रोकना है। बताया कि वह किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था हेतु सुंदर डैम, गंगा बटेश्वर पंप व भोरा बराज जैसे बड़े डेमो को किसानों के लिए मददगार बनाएंगे। जिसमें उसकी स्टोरेज क्षमता, नहर का पक्कीकरण पर कार्य कराया जाएगा। ढोलिया नदी पर चेक डैम फाटक सहित बनाए जाने की उनकी योजना है।