अनुभव की बात,अनुभव के साथ ।
मंगलवार को जब देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2018) भारतीय सिनेमा के शाहंशाह महानायक अमिताभ बच्चन को दिए जाने की घोषणा की तो सिने जगत और सिने प्रेमी ही नहीं,पूरा देश खुशी से झूम उठा।यह एक विचित्र संयोग ही है कि महानायक ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1969 से की थी और उसी वर्ष दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की भी शुरुआत हुई थी।यह सच है कि पुरस्कार पाने से जितना गर्व अमिताभ बच्चन को हो रहा होगा, उतनी ही खुशी पुरस्कार देने वाली संस्था को भी हो रहा होगा।यह सिर्फ अमिताभ बच्चन के लिए नहीं उस संस्था के लिए भी गर्व की बात होगी। दादासाहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाना जाता है।इस महानायक को पहले भी पद्म विभूषण सहित चार राष्ट्रीय,पन्द्रह फिल्म फेयर पुरस्कार सहित कई सम्मान मिल चुके हैं।
यूँ तो हिंदी सिनेमा का सफर 1912 में प्रारंभ हुआ,परंतु भारतीय सिनेमा की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ 1931 में प्रदर्शित हुई।तब से भारतीय सिनेमा ने कई नायकों को देखा। लेकिन महानायक का दर्जा यदि किसी को मिला तो वह सिर्फ और सिर्फ अमिताभ बच्चन ही हैं।यूँ ही कोई महानायक नहीं हो जाता।कई असफल फिल्म देने के बावजूद यदि आज अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के शाहंशाह और महानायक हैं तो इसकी एकमात्र वजह है कि उन्होंने पूरे अनुशासन के साथ फिल्मों के लिए खुद को समर्पित कर दिया।फिल्मों के लिए यह उनका समर्पण और उनका करिश्माई व्यक्तित्व ही है कि 76 वर्ष की उम्र में भी अभी वह एक साथ आठ फिल्मों में काम कर रहे हैं।
फिल्म ‘जंजीर’ में ‘एंग्री यंग मैन’ का किरदार हो या फिर दीवार,शराबी, शोले,मर्द,अग्निपथ,सूर्यवंशम,ब्लैक, बागवान या फिर पा,पीकू और पिंक।हर किरदार के साथ उन्होंने जो न्याय किया है कोई और नहीं कर सकता।उन्होंने किरदार को निभाया नहीं है,अपने हर किरदार को उन्होंने जिया है।खूबियां उनके अंदर कूट-कूट कर भरी पड़ी है।उनका व्यक्तित्व,उनकी आवाज,उनका अनुशासन,उनका मधुर व्यवहार,हर किसी को अपना बना लेने की क्षमता और सबसे बड़ी बात अपने काम के लिए समर्पण।महानायक होते हुए भी खुद को निर्देशक के हवाले कर देना और शूटिंग पर हमेशा नियत समय पर पहुंचना।ये सब कोई सीखे तो इस महानायक से सीखे।
निजी जीवन में भी अमिताभ का कोई सानी नहीं।उन्होंने सैकड़ों गरीब किसानों के दर्द को समझा और उनका कर्ज अपनी जेब से चुकता कर किसानों को आत्महत्या करने से बचाया।राजनीति में भी अमिताभ ने कदम रखा था और दिग्गज राजनेता हेमवती नंदन बहुगुणा को पराजित कर वो संसद पहुंचे थे।परंतु राजनीति उन्हें रास नहीं आई और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किए बिना ही सदन से इस्तीफा दे दिया।मेरा तो यही मानना है कि अमिताभ बच्चन के बिना भारतीय सिनेमा अधूरा है और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को शब्दों में बयां कर पाना मुमकिन नहीं है।