अनुभव की बात,अनुभव के साथ ।
आज हिंदी दिवस है और इस अवसर पर सुबह से ही शुभकामना देने का सिलसिला चल रहा है।जगह-जगह कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है और इसके विकास की बात की जा रही है।सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदी के तारीफ में कसीदे पढ़े जा रहे हैं और हर कोई आज खुद को हिंदी का हिमायती बताने में लगा है।कोई हिंदी को देश की शान कह रहा है,तो कोई इसे अपनाकर देश का मान बढ़ाने की बात कर रहा है।बहुत अच्छी बात है,सच ही तो है,हिंदी हमारी धरोहर है,हिंदी हमारा संस्कार है,हिंदी हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सरल माध्यम है।
ऐसे तो हर भाषा का अपना अलग महत्व है।भाषा संवाद का एक माध्यम मात्र होता है।परंतु ये सच है कि हिंदी में जो अपनापन है,जो अपनत्व का भाव है,भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की जो खान है,वह शायद ही किसी अन्य भाषा में है।परंतु अफसोस,आज हर कोई इंग्लिश के पीछे भागता नजर आता है।कोई दो लाइन अंग्रेजी में बात कर ले तो हम उसकी तारीफ शुरू कर देते हैं,जबकि वहीं हिंदी में दस लाइन बोलने वाले पर भी हम कोई ध्यान नहीं देते।दुख तो तब होता है,जब विद्यालयों में बच्चे तो बच्चे,शिक्षक भी हिंदी को (Hindi) अंग्रेजी में लिखते हैं।आप चाहे हिंदी के अच्छे जानकार हों,परंतु अंग्रेजी का न आना हमें समाज में अशिक्षित महसूस कराता है।गांव में, शहरों में हर ओर इंग्लिश माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आई हुई है।वहीं हिंदी माध्यम में शायद ही कोई निजी विद्यालय नजर आता है।समाज में एक ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे हिंदी एक तुक्ष भाषा हो,जबकि अंग्रेजी श्रेष्ठ भाषा।यह बेहद अफसोस की बात है कि हम भटक गए हैं और अंग्रेजी का अधिक सम्मान कर रहे हैं। इसके लिए कोई और नहीं हम सब जिम्मेवार हैं।यही वजह है कि हिंदी साहित्य जो कभी सबसे समृद्ध हुआ करता था,आज गरीब होता जा रहा है।
ये बेहद शर्म की बात है कि आज के दिन हम सब हिंदी के सम्मान में एक से एक बात बोल रहे हैं।हम खुद को हिंदी का सबसे बड़ा हिमायती बता रहे हैं और कल से फिर वही।निश्चित रूप से इसके लिए हमारी सरकार भी काफी हद तक दोषी है,क्योंकि विभिन्न सरकारी कार्यालयों में भी अधिकांश काम अंग्रेजी में हो रहे हैं।निजी कंपनियों की तो बात ही छोड़ दें।
हिंदी के विकास के लिए हम सबों को अपनी सोंच में परिवर्तन लाना होगा। हिंदी भाषियों को हीन भावना से देखने की हमारी सोंच को बदलना होगा।हमें हिंदी पढ़ने और लिखने में शर्म छोड़ना होगा।आखिर हिंदी न सिर्फ एक भाषा है,बल्कि हमारी संस्कृति है,हमारी धरोहर है और अपनी संस्कृति से शर्म कैसी ?